

कृषि में दशकों की प्रगति के बावजूद भारत अब भी "उत्पादन खाई" (Yield Gap) से जूझ रहा है, यानी जो पैदावार किसान वास्तव में प्राप्त कर रहे हैं और जो आदर्श रूप से संभव है, उसके बीच अंतर है। यह अंतर विशेष रूप से धान और गेहूं जैसी मुख्य फसलों में साफ दिखता है, जहाँ भारत की औसत पैदावार वैश्विक मानकों से काफी पीछे है। जलवायु परिवर्तन, अनियमित बारिश, कीट प्रकोप और फसल कटाई के बाद नुकसान जैसी समस्याएँ छोटे किसानों के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं। ऐसे में भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है या तो नवाचार को अपनाए, या कृषि क्षेत्र में ठहराव का जोखिम उठाए।
कृषि में क्रांति लाने को तैयार एआई (AI)
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(Artificial Intelligence) यानी एआई (AI) अब एक शक्तिशाली उपकरण बन चुका है जो वैश्विक स्तर पर खेती को बदल रहा है और भारत के कृषि क्षेत्र को भी नया रूप दे सकता है। एआई बड़े डेटा को विश्लेषित कर सकता है, परिणामों की भविष्यवाणी कर सकता है और रीयल टाइम सलाह दे सकता है, ये सभी क्षमताएँ भारत की उत्पादन खाई को पाटने और कृषि को भविष्य के लिए तैयार करने में मदद कर सकती हैं।
बीज से बाजार तक एआई की स्मार्ट भूमिका
एआई (AI) अब केवल एक चर्चा का विषय नहीं रहा, बल्कि यह जमीन पर उपयोग में लाया जा रहा एक व्यावहारिक और प्रभावी समाधान है। बीज बोने से पहले ही एआई आधारित प्लेटफॉर्म मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करते हैं, उपयुक्त फसल को बताते हैं और मौसम के पैटर्न के आधार पर सही बुआई समय बताते हैं। खेती के दौरान स्मार्ट सेंसर्स, ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी एआई सिस्टम को रीयल टाइम डेटा देते हैं, जिससे पौधों में तनाव, कीट हमले या पोषण की कमी का सटीक विश्लेषण हो पाता है। इससे सटीक खेती (Precision Farming) संभव होती है जिसमें केवल जरूरत के अनुसार पानी, उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग होता है, जिससे लागत कम होती है और उत्पादन बढ़ता है।
फसल कटाई के बाद भी एआई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह लॉजिस्टिक्स को सुव्यवस्थित करता है, बाजार की मांग का पूर्वानुमान लगाता है और मूल्य निर्धारण एवं भंडारण को बेहतर बनाता है। भारत में 30-40% कृषि उपज फसल कटाई के बाद की लापरवाही के कारण बर्बाद हो जाती है, जिसे एआई आधारित सिस्टम काफी हद तक रोक सकते हैं।
जमीनी स्तर पर असर: असली किसान, असली बदलाव
देश के कई हिस्सों में पायलट प्रोजेक्ट्स से यह साबित हो चुका है कि एआई किसानों की जिंदगी को बेहतर बना सकता है। आंध्र प्रदेश में एआई आधारित सलाहकार ऐप्स के इस्तेमाल से फसल उत्पादन में 30% तक की बढ़ोत्तरी देखी गई है। वहीं, तेलंगाना के खम्मम जिले में शुरू हुए ‘सागु-बागु’ कार्यक्रम ने 7,000 से ज्यादा मिर्च किसानों की आय में बड़ा बदलाव लाया है। एआई से मिली रीयल टाइम सलाह और कीट नियंत्रण उपायों से इन किसानों की पैदावार में 21% की वृद्धि हुई, लागत में कटौती हुई और प्रति एकड़ ₹66,000 तक की अतिरिक्त आमदनी हुई-यानी एक फसल चक्र में कमाई लगभग दोगुनी हो गई।
इस सफलता के बाद यह कार्यक्रम 10 जिलों में फैलाया गया है और 5 फसलों के लिए 5 लाख किसानों को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। ये उदाहरण दिखाते हैं कि एआई सिर्फ सैद्धांतिक बात नहीं, बल्कि व्यावहारिक बदलाव ला रहा है।
सरकारी सहयोग मौजूद, लेकिन चुनौतियाँ अब भी बरकरार
भारत सरकार ने एआई की संभावनाओं को देखते हुए 2021–2025 की डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन शुरू किया है, जिसके तहत एआई, ड्रोन और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों को खेती में शामिल किया जा रहा है। हालांकि यह एक सकारात्मक कदम है, फिर भी कुछ बड़ी चुनौतियाँ हैं जो इसकी व्यापक पहुंच में बाधा बनी हुई हैं।
सबसे बड़ी चुनौती है डेटा की गुणवत्ता। एआई को अच्छे, विस्तृत और अद्यतन डेटा की ज़रूरत होती है, लेकिन भारत में ज़्यादातर खेतों का डेटा या तो बिखरा हुआ है, पुराना है या है ही नहीं। इसके बिना एआई की भविष्यवाणी और सलाहें कम प्रभावी हो जाती हैं।
दूसरी समस्या है डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर। ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की पहुंच कमजोर है, स्मार्टफोन का उपयोग कम है और स्थानीय भाषाओं में ऐप्स की कमी है।
तीसरी चुनौती है लागत। छोटे और सीमांत किसान, जो भारत की 80% खेती का हिस्सा हैं, अक्सर इन तकनीकों को आर्थिक रूप से वहन नहीं कर सकते जब तक सरकार सब्सिडी या सामूहिक उपयोग का मॉडल न लाए।
इसके अलावा एक और चुनौती है भरोसे की कमी। कई किसान पारंपरिक ज्ञान पर अधिक विश्वास करते हैं और यदि एआई से मिली सलाह उनकी भाषा में न हो या पहले कोई ठोस उदाहरण न दिखाया जाए, तो वे तकनीक को अपनाने से हिचकिचाते हैं।
आगे का रास्ता: समावेशी और टिकाऊ रणनीति
भारत में एआई को किसानों तक पहुँचाने के लिए एक बहुस्तरीय रणनीति की ज़रूरत है। ओपन-सोर्स कृषि डेटा प्लेटफॉर्म, मजबूत ग्रामीण इंटरनेट नेटवर्क और एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) के जरिए सस्ती एआई सेवाएं प्रदान कर यह तकनीक लोकतांत्रिक रूप से सबके लिए उपलब्ध कराई जा सकती है।
स्थानीय नेताओं और कृषि विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करना जरूरी है ताकि वे एआई को समुदाय के भीतर भरोसे के साथ लागू कर सकें। एआई का उद्देश्य किसानों को बदलना नहीं, सशक्त बनाना है। तकनीक, नीति और ज़मीनी प्रयासों के सही मेल से भारत आत्मनिर्भर और समृद्ध कृषि प्रणाली की ओर बढ़ सकता है। यह राह कठिन ज़रूर है, लेकिन एक स्मार्ट, टिकाऊ और अधिक उत्पादक भविष्य अब बहुत दूर नहीं है।
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