

देश के पूर्वी, मध्य, पश्चिमी और उत्तरी भागों में मानसून अच्छी गति से सक्रिय है। उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के ज़्यादातर उपमंडलों में औसत से अधिक वर्षा दर्ज की गई है। हालांकि, मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे क्षेत्र इस प्रगति से पीछे हैं। दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत की बात करें तो तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, रायलसीमा और लक्षद्वीप में मौसमी वर्षा की कमी देखी जा रही है। तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में पहले हुई अधिशेष वर्षा अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। पिछले 10 दिनों से इन क्षेत्रों में कोई बड़ी मानसूनी गतिविधि नहीं देखी गई है और यह स्थिति आने वाले दिनों में भी बनी रह सकती है।
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दक्षिण भारत में कमजोर मानसून का कारण
दक्षिण भारत में सुस्त मानसून का प्रमुख कारण बंगाल की खाड़ी से उठने वाले निम्न दबावों का उत्तर की ओर रुख करना है। हाल के दिनों में अधिकतर मौसमी सिस्टम उत्तर दिशा की ओर, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमाओं के समांतर, इंडो-गंगेटिक मैदानों के साथ बढ़ते गए हैं। इससे पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में पहले की कमी से उबरने में मदद मिली है। हालांकि बिहार अब भी 35% वर्षा की भारी कमी से जूझ रहा है।
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झारखंड पर बना सिस्टम हुआ कमजोर
फिलहाल झारखंड और आसपास के इलाकों पर बना निम्न दबाव क्षेत्र कमजोर हो चुका है, लेकिन इससे जुड़ा हुआ चक्रवाती परिसंचरण अब भी सक्रिय है। यह अगले एक सप्ताह तक पूर्वी राज्यों, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में सक्रिय मानसूनी गतिविधियों को बनाए रखेगा। धीरे-धीरे वर्षा की यह धारा पूर्वी भागों को छोड़कर पश्चिम की ओर खिसकती जाएगी।
दक्षिण भारत में बारिश की उम्मीद नहीं, किसानों की बढ़ी चिंता
दक्षिण भारत में मौसम प्रणाली की दिशा से कोई खास ऊर्जा नहीं मिल रही है जिससे इस क्षेत्र की मानसूनी गतिविधियाँ पुनः सक्रिय हो सकें। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, रायलसीमा, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में बारिश की स्थिति शांत बनी रहेगी। इस कारण आने वाले सप्ताह में यहां वर्षा की कमी और बढ़ सकती है। किसानों के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि फसल बोवाई के समय में वर्षा का न होना गंभीर संकट ला सकता है। यहां अच्छी बारिश के लिए इंतजार और लंबा हो सकता है।