दो कमजोर पश्चिमी विक्षोभ की दस्तक, पहाड़ों पर हल्की बर्फबारी के संकेत—जम्मू और लद्दाख में क्या है स्थिति?
मुख्य मौसम बिंदु
- पश्चिमी हिमालय में एक महीने से बर्फबारी का अभाव, दो कमजोर WD ही सक्रिय।
- हल्की बारिश-बर्फबारी संभव, लेकिन बड़े सिस्टम की कमी जारी।
- देरी से ग्लेशियर, रबी फसलें और पर्यटन पर नकारात्मक असर।
- उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बारिश और कोहरा जल्द नहीं बढ़ेगा।
पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में करीब एक महीने से बर्फबारी नहीं हुई है। पिछली बार बारिश और बर्फबारी 5 नवंबर को हुई थी। यह लंबा सूखा दौर असामान्य है क्योंकि नवंबर में आमतौर पर दो से तीन सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ (WDs) आते हैं, जो समय-समय पर बारिश और बर्फबारी कराते हैं।

दो कमजोर पश्चिमी विक्षोभ पहुंच रहे, हल्की बर्फबारी संभव
अच्छी खबर यह है कि अब दो लगातार लेकिन कमज़ोर पश्चिमी विक्षोभ पश्चिमी हिमालय की ओर बढ़ रहे हैं। इनसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के ऊपरी हिस्सों में हल्की बारिश और बर्फबारी होने की संभावना है। हालांकि, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में ज्यादातर मौसम सूखा ही रहेगा, क्योंकि ये सिस्टम न तो पर्याप्त नमी ला रहे हैं और न ही उनकी तीव्रता अधिक है। अभी कम से कम एक हफ्ते तक किसी सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के आने के संकेत नहीं हैं।
बर्फबारी की कमी क्यों चिंताजनक है
बर्फबारी में देरी पहाड़ी राज्यों के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। सर्दियों की बारिश और बर्फबारी वहां की पर्यावरणीय और आर्थिक व्यवस्था के लिए बेहद ज़रूरी है:
• बागवानी और सर्दी की फसलें ठंड और समय पर होने वाली बर्फबारी पर निर्भर करती हैं।
• भारी बर्फबारी से ग्लेशियरों का पुनर्भरण होता है और उनका संतुलन बना रहता है।
• ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियाँ सर्दियों में जमा बर्फ पर निर्भर करती हैं, जिससे गर्मियों में पर्याप्त जलप्रवाह मिलता है।
पिछले वर्ष 2024 में भी बर्फबारी देर से हुई थी और यह दिसंबर मध्य तक शुरू हुई थी। इस साल भी कुछ ऐसा ही पैटर्न दिखाई दे रहा है।
उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों पर प्रभाव
सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों के मौसम को भी प्रभावित करते हैं। इनके गुजरने से इंड्यूस्ड साइक्लोनिक सर्कुलेशन बनते हैं, जो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर में सर्दी की बारिश लाते हैं।
यह बारिश दिन के तापमान को कम करती है और हवा में नमी बढ़ाती है, जिससे कोहरा बनने में मदद मिलती है। कोहरा दृश्यता घटाता है और दिन की धूप को कम कर देता है, जिससे उत्तरी भारत की विशिष्ट सर्दियों का मौसम बनता है।
लेकिन फिलहाल मजबूत पश्चिमी विक्षोभ न होने के कारण, मैदानी इलाकों में सर्दी की बारिश जल्द नहीं दिखाई दे रही।
पर्यटन और स्थानीय आजीविका पर असर
पहाड़ों में बर्फबारी केवल मौसम नहीं, बल्कि सर्दियों के पर्यटन की रीढ़ है। होटल, होमस्टे, टैक्सी चालक और स्थानीय व्यापारी बर्फबारी का इंतज़ार करते हैं, क्योंकि इससे मैदानी इलाकों से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर जैसे शहरों के लोग भी सर्दियों में बर्फ़ देखने पहाड़ों का रुख करते हैं। लेकिन इस बार दिसंबर तक बर्फबारी में देरी होने के कारण पर्यटन गतिविधियाँ सुस्त पड़ी हैं और स्थानीय लोगों की आमदनी पर असर पड़ रहा है।
आगे का मौसम: उम्मीद की किरण
आने वाले पश्चिमी विक्षोभ भले ही कमज़ोर हैं और केवल हल्की बारिश-बर्फबारी ही दे पाएंगे, लेकिन यह एक बदलाव की शुरुआत हो सकती है।हिमालय, वहां के निवासी, और बर्फप्रेमी पर्यटक अब उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही मजबूत सिस्टम आएँ और हिमालय की सर्दियों की पारंपरिक लय वापस लौटे।







