

मौसम की मार से कोई अछूता नहीं- इंसान हो या जानवर
जहाँ इंसान मौसम की मार से बचने के लिए घर, हीटिंग, कूलिंग और कपड़ों का सहारा लेते हैं, वहीं भारत में लाखों आवारा कुत्ते खुले आसमान के नीचे बिना किसी सुरक्षा के जीते हैं। हीटवेव, ठंड की लहर, भारी बारिश और बाढ़ सिर्फ असुविधा ही नहीं, बल्कि सीधे-सीधे उनकी मौत का कारण बनती हैं।
मौसम में बढ़ती अनिश्चितता और आवारा जानवरों की मुश्किलें
भारत का मौसम तेजी से अप्रत्याशित हो रहा है, जिसका असर आवारा जानवरों पर बेहद गंभीर है:
• ठंड की लहर (Cold Wave): 2018 की शुरुआत में लखनऊ में अचानक पड़ी ठंड से सिर्फ 10 दिनों में 750 आवारा जानवरों की मौत हुई, जिनमें लगभग 50% कुत्ते थे। मुख्य कारण हाइपोथर्मिया और भोजन की कमी थे।
• हीटवेव: सिर्फ इस साल 48 कुत्ते और बिल्लियों की मौत गर्मी से हुई और 173 को गंभीर हालत में बचाया गया। डामर की गर्म सतह, डिहाइड्रेशन और लू घंटों में जानवरों की जान ले सकते हैं।
• मानसून का खतरा: भारी बारिश के दौरान पार्वोवायरस और लेप्टोस्पायरोसिस जैसी बीमारियाँ तेजी से फैलती हैं, साथ ही साफ खाना और सूखा ठिकाना न मिलने से स्थिति और बिगड़ती है।
खामोश आँकड़े-सड़कों पर ऊँची मृत्यु दर
पश्चिम बंगाल के एक अध्ययन के मुताबिक, सिर्फ 19% आवारा कुत्ते ही प्रजनन उम्र तक पहुँच पाते हैं। बाकी 81% की कम उम्र में ही बीमारी, कुपोषण, दुर्घटनाओं या खराब मौसम के कारण मौत हो जाती है।
जब बड़ी संख्या में कुत्ते लंबे और दर्दनाक हालात में मरते हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या इसे सच में "प्राकृतिक जीवन" कहा जा सकता है?
शेल्टर और नसबंदी — दोहरी समाधान रणनीति
1. मौसम से सुरक्षा:
अच्छी तरह से संचालित पशु आश्रय (Animal Shelters) कुत्तों को तेज गर्मी, कड़ाके की ठंड और लगातार बारिश से बचाते हैं, जिससे मौसम से जुड़ी मौतें काफी हद तक कम होती हैं।
2. मानवीय तरीके से जनसंख्या नियंत्रण:
नसबंदी (Neutering) से कुत्तों का प्रजनन रुक जाता है। पुनर्वास और नियंत्रित तरीके से छोड़ने के बाद, वे सड़कों पर बढ़ती संख्या में योगदान नहीं देते। 5–6 साल में यह तरीका आवारा कुत्तों की संख्या को प्राकृतिक और टिकाऊ स्तर पर ला सकता है।
जन स्वास्थ्य से सीधा संबंध
अक्सर रेबीज़ फैलने के लिए आवारा कुत्तों को दोष दिया जाता है, लेकिन असली वजह है टीकाकरण की कमी और अधिक जनसंख्या। दुनिया भर में हर साल रेबीज़ से 55,000 से अधिक लोगों की मौत होती है, जिसमें आवारा कुत्तों का बड़ा योगदान है। एक Shelter–Neuter–Vaccinate–Release कार्यक्रम न सिर्फ कुत्तों को सुरक्षित रखता है, बल्कि इंसानों के लिए भी खतरा घटाता है।
शहरों में जानवरों के लिए मौसम-तैयार समाधान
जलवायु सहनशीलता (Climate Resilience) सिर्फ इमारतों और खेती के लिए नहीं, बल्कि सड़कों पर रहने वाले जीवों के लिए भी जरूरी है। आवारा श्वानों(कुत्तों) के लिए आश्रय(शेल्टर), नसबंदी और टीकाकरण का संयोजन मौसम से होने वाली क्रूरता को खत्म करता है और बढ़ती जनसंख्या को रोकता है। यह चुनाव सड़कों और पिंजरों के बीच का नहीं बल्कि ऐसा सिस्टम बनाने का है, जिसमें कुत्ते अपनी प्राकृतिक आयु तक जी सकें। साथ ही बिना मौसम की मार झेलते हुए शहरों में कम, स्वस्थ और सुरक्षित आवारा कुत्तों की आबादी बनी रहे।