

भारत में आकाशीय बिजली (Lightning) गिरना सबसे घातक प्राकृतिक आपदाओं में गिना जाता है। हर साल हज़ारों लोगों की मौत हो जाती है, लेकिन यह समस्या अक्सर जलवायु चर्चा से बाहर रह जाती है। भारत के दो राज्यों में हर साल आकाशीय बिजली करने से सैंकड़ों लोगों की मौत होती है। आईये जानते हैं इन दो राज्यों में ही सबसे ज्यादा बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं।
ओडिशा: सबसे ज़्यादा मौतें और घटनाएँ
ओडिशा बिजली गिरने से मौतों में देश में सबसे आगे है। यहां पिछले पाँच सालों में आकाशीय बिजली गिरने से 1,625 मौतें दर्ज हुईं हैं, जो भारत के किसी भी राज्य से सबसे ज़्यादा है। बता दें, ओडिशा में हर साल लगभग 6 लाख बिजली गिरने की घटनाएँ होती हैं। जिसमें सबसे ज्यादा दो जिले मयूरभंज और सुंदरगढ़ प्रभावित हुए हैं। जहांसबसे ज्यादा प्रभावित तीन जिले हैं। हर साल मयूरभंज में 72,000, सुंदरगढ़ में लगभग 50,000 और क्योंझर में 46,000 आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं।
बिहार: मौतों का सिलसिला और भयावह हादसे
गौरतलब है, बिहार बिजली से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों में दूसरा है। यहां 2017 से 2023 के बीच हर साल औसतन 271 मौतें और 57 घायल बिजली गिरने से होते हैं। 25 जून 2020 को एक ही दिन में 83 लोगों की मौत हुई थी।
राष्ट्रीय तस्वीर: हर साल हज़ारों जानें जाती हैं
• अप्रैल से जुलाई 2025 के बीच देशभर में 1,621 लोगों की मौत बिजली और बारिश से जुड़ी घटनाओं में हुई।
• सिर्फ़ तीन दिन (10–12 अप्रैल 2025) में 126 मौतें, जिनमें बिहार (82) और यूपी (23) सबसे आगे हैं।
क्यों सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं ये राज्य?
भूगोल और भू-आकृति
बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में बड़े मैदानी क्षेत्र, खेती योग्य ज़मीन और खुले मैदान हैं। यहाँ अधिकतर लोग खेती या मजदूरी के दौरान बाहर खुले में रहते हैं, जिससे बिजली गिरने का ख़तरा बढ़ जाता है।
मौसम और वातावरण
तेज़ गर्मी और उच्च नमी मिलकर वातावरण को “प्रेशर कुकर” जैसा बना देते हैं, जिससे बादल-गर्जन और बिजली की घटनाएँ तीव्र हो जाती हैं। जलवायु परिवर्तन भी खतरे को बढ़ा रहा है। वैज्ञानिक मानते हैं कि तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि बिजली गिरने की घटनाओं को 12% तक बढ़ा सकती है।
सामाजिक असुरक्षा
बिजली से मौतें अधिकतर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में होती हैं। जिसका कारण पक्के आश्रय की कमी, बिजली से बचाव की तकनीक का अभाव और जागरूकता की कमी है। साथ ही प्रारंभिक चेतावनी (Early Warning) अक्सर इन इलाकों तक सही समय पर नहीं पहुँच पाती है।
समाधान और तैयारी
बिजली गिरना अब सिर्फ़ प्राकृतिक समस्या नहीं, बल्कि जलवायु और सामाजिक चुनौती भी है। इसके समाधान के लिए तेज़ और मजबूत चेतावनी प्रणाली की जरूरत है। साथ ही गाँवों और आदिवासी क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाया जाए, गाँवों और स्कूलों में सरल लाइटनिंग अरेस्टर का इंस्टॉलेशन हो। वहीं, बिजली को अधिक राज्यों में क्षतिपूर्ति योग्य प्राकृतिक आपदा घोषित किया जाए, ताकि पीड़ित परिवारों को मदद मिल सके।
इस तरह स्पष्ट होता है कि बिजली गिरना सिर्फ़ प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन + सामाजिक कमजोरियों का मिला-जुला संकट है। जिसमें बिहार और ओडिशा बिजली गिरने से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। अगर समय रहते रोकथाम और तैयारी नहीं की गई, तो यह मौन कातिल आगे भी जानें लेता रहेगा।
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