
दक्षिण-पश्चिम मानसून अब देश के अधिकांश हिस्सों से विदा हो चुका है। मानसून वापसी की रेखा पश्चिम में कर्नाटक के कारवार-गोवा से गुजरते हुए पूर्व में गुवाहाटी तक जा रही है। अगले एक-दो दिनों में यह उत्तर-पूर्व भारत के बचे हुए हिस्सों से भी पूरी तरह लौट जाएगा। साथ ही, छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेलंगाना के कुछ हिस्सों से भी मानसून की वापसी एक साथ पूरी हो जाएगी। इसके बाद उत्तर-पूर्वी मानसून, जिसे आमतौर पर विंटर मानसून कहा जाता है, के आने का रास्त साफ हो जाएगा।
दोनों मानसून एक साथ सक्रिय नहीं हो सकते
मौसम विज्ञान के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी मानसून एक साथ सक्रिय नहीं रह सकते है। हालांकि, कई बार एक मानसून के पूरी तरह विदा होने के साथ ही दूसरे का आगमन भी हो जाता है। ऐसा पहले भी हो चुका है, जैसे 16 अक्टूबर 2019 को दक्षिण-पश्चिम मानसून ने पूरे देश से वापसी की थी, और उसी दिन उत्तर-पूर्वी मानसून ने तमिलनाडु में दस्तक दी थी।
उत्तर-पूर्वी मानसून की शुरुआत के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ
उत्तर-पूर्वी मानसून के शुरू होने के लिए कुछ मौसम संबंधी शर्तें पूरी होना जरूरी है, जैसे-
1. दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी 15° उत्तर अक्षांश तक होनी चाहिए।
2. तमिलनाडु तट पर स्थायी पूर्वी हवाओं (Easterly Winds) का बहना शुरू होना चाहिए।
3. इन पूर्वी हवाओं की गहराई 5,000 फीट तक पहुंचनी चाहिए।
4. तटीय तमिलनाडु, दक्षिणी आंध्र प्रदेश और आस-पास के क्षेत्रों में व्यापक बारिश होनी चाहिए।
उत्तर-पूर्वी मानसून की सामान्य तिथि और स्थिति
भले ही ऊपर बताई गई परिस्थितियाँ पहले बन जाएं, लेकिन उत्तर-पूर्वी मानसून के आने की घोषणा 10 अक्टूबर से पहले नहीं की जाती (जो इस बार भी नहीं हुई है)। सामान्य तौर पर, तमिलनाडु तट पर पूर्वी/दक्षिण-पूर्वी हवाओं की शुरुआत 14 अक्टूबर के आसपास होती है, जबकि उत्तर-पूर्वी मानसून का सामान्य आगमन 20 अक्टूबर के आसपास होता है। इसके आगमन में 10 दिन तक की देरी या जल्दी होना सामान्य माना जाता है।
इस प्रकार आने वाले कुछ दिनों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की पूरी विदाई और उत्तर-पूर्वी मानसून की औपचारिक शुरुआत देखने को मिलेगी।
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