
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सरकार द्वारा की गई क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) की कोशिश ने मिलेजुले नतीजे दिए हैं। जहां सरकार इसे शुरुआती सफलता बता रही है, वहीं वैज्ञानिक और आम लोग इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठा रहे हैं।
क्या हुआ क्लाउड सीडिंग ट्रायल में?
दिल्ली सरकार और आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के सहयोग से 28 और 29 अक्टूबर को क्लाउड सीडिंग ट्रायल किया गया। दो विमान sorties ने सिल्वर आयोडाइड फ्लेयर्स (Silver Iodide Flares) को दिल्ली-नोएडा और आसपास के इलाकों में छोड़ा जैसे खेकरा, बुराड़ी, करोल बाग, मयूर विहार और भोजपुर। हालांकि, बादलों में नमी मात्र 15–20% थी, जबकि प्रभावी बारिश के लिए यह कम से कम 50% होनी चाहिए। इस कारण केवल बहुत हल्की वर्षा (0.1–0.2 मिमी) दर्ज की गई।
क्यों नहीं हुई बारिश?
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मनीन्द्र अग्रवाल के अनुसार, मुख्य कारण था बादलों की कम नमी और ऊंचाई (लगभग 10,000 फीट)। Skymet Weather के विश्लेषण के मुताबिक, यदि बादल 5,000 फीट से नीचे होते, तो वर्षा की संभावना अधिक होती। ऊंचे और शुष्क बादलों के कारण सीडिंग से जलकण नहीं बन पाए और बारिश नहीं हो सकी।
सरकार का दावा: "वैज्ञानिक प्रगति"
दिल्ली सरकार का कहना है कि यह प्रयोग भविष्य के लिए “वैज्ञानिक प्रगति” का संकेत है। पर्यावरण मंत्री मंजींदर सिंह सिरसा ने बताया कि शुरुआती परिणामों में कुछ स्टेशनों पर PM2.5 और PM10 में 6–10% की गिरावट देखी गई। सरकार ने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में 10 और ट्रायल किए जाएंगे, यदि मौसम की स्थिति अनुकूल रही।
जमीनी हकीकत और मीडिया रिपोर्ट
ज्यादातर मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि कहीं भी उल्लेखनीय बारिश नहीं हुई। लोगों ने भी यह महसूस किया कि हवा की गुणवत्ता में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली के सर्द और शुष्क बादलों में नमी इतनी कम होती है कि क्लाउड सीडिंग मुश्किल हो जाती है। यह स्थिति पहले भी कई बार असफल साबित हुई है।
क्लाउड सीडिंग के विज्ञान की हकीकत
क्लाउड सीडिंग में रसायन (जैसे सिल्वर आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड) को बादलों में छोड़ा जाता है ताकि वे वर्षा की बूंदें बनने में मदद करें। लेकिन यह तभी संभव है जब बादलों में पर्याप्त नमी और ऊर्ध्वाधर विकास हो। दिल्ली जैसी जगहों में जहां आर्द्रता बहुत कम और इनवर्ज़न लेयर मजबूत होती है, वहां यह प्रक्रिया प्रभावी नहीं हो पाती।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव
दुनिया के कई देशों में क्लाउड सीडिंग पर लंबे समय तक प्रयोग किए गए हैं- जैसे UAE, चीन, अमेरिका और थाईलैंड।इन जगहों पर सफलता पाने में कई सालों की कोशिशें और सैकड़ों उड़ानें लगीं। दिल्ली में यह प्रयोग अभी शुरुआती स्तर पर है, और स्थायी समाधान से कोसों दूर है।
क्या यह स्थायी समाधान है?
विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग एक आपातकालीन उपाय है, न कि स्थायी समाधान। यह कुछ घंटों या दिनों के लिए हवा में धूल और कणों को नीचे बैठा सकता है, लेकिन जब तक वाहनों, उद्योगों और पराली जलाने से निकलने वाला प्रदूषण नहीं रोका जाएगा, तब तक हवा साफ नहीं रह सकती।
निष्कर्ष
क्लाउड सीडिंग फिलहाल एक वैज्ञानिक प्रयोगात्मक कदम है, न कि प्रदूषण की स्थायी दवा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह तकनीक तभी सफल होती है जब मौसम पूरी तरह अनुकूल हो और लंबे समय तक लगातार प्रयास किए जाएं। दिल्ली में इस बार की कोशिश ने यह साफ कर दिया है कि आसमान से बारिश बुलाना आसान नहीं, खासकर जब हवा खुद सूखी हो।
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